मौर्य, दीनानाथ
(2018)
नवजागरण के दौर में भाषाई ज़मीन की तलाश.
Paathshaala Bhitar aur Bahar, 1 (1).
pp. 148-152.
Abstract
हिन्दी साहित्य के इतिहास में 1900 से 1920
तक के दौर को ‘द्विवेदी युग’ के नाम से
जाना जाता है। यह हिन्दी साहित्येत िहास का वह
दौर था जब खड़ी बोली हिन्दी अपना स्वरूप
तैयार कर रही थी। इस दौरान भाषा और बोली
के अनेक वि मर्श चर्चा में आए। हिन्दी भाषा की
शब्द सम्पद ा, लिपि और कहन के विवि ध तरीकों
को लेकर एक लम्बी बहस चली। हम सब जानते
हैं कि हिन्दी भाषा के इतिहास में बोलिय ों को
बखूबी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है।
आज हिन्दी भाषा और साहित्य का वि द्यार् थी इस
बात को भूलकर अपनी भाषि क परम्परा को नहीं
टटोल सकता कि ब्रज, अवधी और बुन्देली आदि
बोलिय ाँ दरअसल भाषाओं का ही एक रूप हैं—
हिन्दी भाषा की उत्पत्त् ति पुस्तक आचार्य महावीर
प्रसाद द्विवेदी द्वा रा ऐसे समय (1907) में लि खी
गई जब ‘हिन्दी–हिन्दू–हिन्दुस्ता न’ के तथाकथित
राष्ट्रवादी नज़रि ए भाषा और साहित्य प्रगति के
एजेंडे को स्पष्ट करने और प्रसारित करने का
साधन थे। साथ ही वे अपने आप में जाति/
राष्ट्र के रूपक भी थे। यह इस पुस्तक का
दूसरा महत्त्वपूर्ण ऐतिहासि क पक्ष है। द्विवेदी
जी ‘सरस्वती ’ पत्रिका के सम्पाद क थे जि स ने
इतिहास के उस दौर के भाषि क लोकवृत्त के
निर्माण में अपनी अहम भूमि का नि भाई थी।
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