दुबे, अभय कुमार
(2020)
मैकॉले बनाम भारतीय ज्ञान-प्रणालिया और शिक्षा-व्यवस्था.
Paathshaala Bhitar aur Bahar, 2 (4).
pp. 36-56.
Abstract
इस अनुसन्धान में मैकॉले की शिक्षा सम्बन्धी टिप्पणी की दावेदारियों की जाँच की गई
है। इसमें ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से दिखाया गया है कि जब भारत की क्षेत्रीय
और क्लासिक भाषाओं को ज्ञानोत्पादन के लिए अक्षम बताया जा रहा था, उस समय
उनके दायरों में किस तरह की शिक्षा-प्रणालियाँ चल रही थीं और वे ज्ञानोत्पादन की
कौन-सी परम्पराओं से सम्पन्न थीं। मैकॉले का दावा किस हद तक सही था? क्या
उपनिवेशवादियों द्वारा पूर्व के ज्ञान को गुणवत्ताविहीन बता कर ख़ारिज करने के
लिए पश्चिमी ज्ञान-प्रणाली द्वारा प्रदत्त प्रविधियों और बौद्धिक संहिताओं का इस्तेमाल
किया गया था? इसी के साथ यह लेख प्राच्यवादियों (ओरिएंटलिस्ट्स) द्वारा अपनाई
गई 'क़लम लगाने की रणनीति', आंग्लवादियों (एंग्लिसिस्ट्स) द्वारा प्रतिपादित 'छनन
सिद्धान्त”' और वर्नाकुलरिस्ट्स द्वारा भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के आग्रह
की समीक्षा करते हुए दिखाता है कि किस तरह ये तीनों एक ही लक्ष्य को प्राप्त
करने की विभिन्न युक्तियाँ थीं, और यह लक्ष्य था भारत पर अँग्रेज़ी भाषा को थोपना।
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