प्रसाद, इन्दु
(2015)
प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा का महत्त्व.
Learning Curve (10).
pp. 2-6.
ISSN 2582-1644
Abstract
स समय भारत में शिक्षा का एकमात्र अनियंत्रित इक्षेत्र प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा है। स्कूली शिक्षा के लिए अनेक नियम हैं, और अब तो
सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के लिए एक कानून भी है, तथा
अनेकों विधान, नीतिगत ढाँचे तथा रूपरेखाएँ हैं। पर,
वास्तव में इस तरह का कुछ भी प्रारम्भिक बाल्यावस्था
शिक्षा के लिए नहीं है। हमारे पास ग्रामीण क्षेत्रों में
आँगनवाड़ियों के माध्यम से एक सरकारी पूर्व-स्कूल
(प्री-स्कूल) व्यवस्था अवश्य है। पर निजी क्षेत्र में इस पर
कतई कोई नियंत्रण नहीं है। इसलिए मैं आज अपने घर में
एक पूर्व-स्कूल प्रारम्भ करने का निर्णय ले सकती हूँ और
कोई भी मुझसे इस बारे में कोई सवाल नहीं करेगा। न यह
पूछेगा कि किस पाठ्यक्रम/बोर्ड का अनुसरण किया
जाना है, क्या जब बच्चे 18 माह के हों तब उन्हें लेना
विधिसम्मत है, या उन्हें केवल 3 वर्ष की आयु में ही लिया
जाना चाहिए, किन न्यूनतम सुरक्षा मानदण्डों का पालन
किया जाना चाहिए, संचालक द्वारा कोई प्रशिक्षण प्राप्त
किया गया है या नहीं, आदि। अतः, यह सबके लिए एक
पूरी तरह से खुली छूट वाला क्षेत्र है। इसलिए प्रारम्भिक
बाल शिक्षा तथा देखरेख के लिए, विशेष रूप से शहरी क्षेत्र
में, सभी तरह के निजी केन्द्रों - शिशु सदन (डेकेयर
सेंटर्स), झूला घर (क्रेश), पूर्व-स्कूल, आदि - की जैसे
बाढ़-सी आ गई है। इनमें से किसी को भी आरम्भ करने
और चलाने के लिए कोई नियम नहीं हैं। अतः यह चिन्ता
का बहुत बड़ा मुद्दा है क्योंकि यह बच्चों की सुरक्षा, उनके
सीखने, उनके बड़े होने तथा उनके विकास को प्रभावित
करता है। बचपन के प्रारम्भिक वर्षों का दौर किसी बच्चे के
विकास के सबसे महत्त्वपूर्ण कालखण्डों में से एक होता है।
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